विकास दिव्यकीर्ति: तोड़ी चुप्पी, बोले “मुझे बलि का बकरा बनाया गया”

डॉ विकास दिव्यकीर्ति: एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व

विकास दिव्यकीर्ति

विकास दिव्यकीर्ति का जन्म 26 दिसंबर को हरियाणा के भिवानी में हुआ था और वह एक प्रतिष्ठित भारतीय शिक्षाविद, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिन्हें खासतौर पर यूपीएससी की तैयारी के लिए जाना जाता है। वे दृष्टि आईएएस के संस्थापक और निदेशक हैं, जो यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए भारत के शीर्ष कोचिंग संस्थानों में से एक है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

विकास दिव्यकीर्ति का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता एक सरकारी कर्मचारी थे और माँ गृहिणी। शिक्षा के प्रति उनके परिवार का रूझान रहा, जिसके चलते उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा अपने गृह नगर से पूरी की। दिव्यकीर्ति ने दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और इसके बाद उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। इसके अलावा, उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी भी की।

विकास दिव्यकीर्ति की IAS में रैंक 

1995 में हिन्दी साहित्य की डिग्री पूरी करने के बाद उन्होंने 1996 में सिविल सेवा परीक्षा में उल्लेखनीय सफलता हासिल की, और अपने पहले प्रयास में ही उन्हें AIR 384 प्राप्त हुई।

विकास दिव्यकीर्ति ने नौकरी क्यों छोड़ी

दिव्यकीर्ति ऑफ़िसर पद पर चयनित होने के बावजूद उनका उस प्रोफ़ेशन में मन नहीं लगा उन्होंने उसके आगे भी काफ़ी कोशिश की और यूपीएससी के कई एटेम्पट दिये लेकिन मनचाहे आईएएस पद के लिए चयनित नहीं हो पाये।

करियर की शुरुआत

दिव्यकीर्ति का करियर शुरुआत से ही शिक्षण और सामाजिक सेवा की दिशा में था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य के प्रोफेसर के रूप में की। उनका मानना था कि शिक्षा समाज में परिवर्तन लाने का सबसे प्रभावी माध्यम है।

दृष्टि आईएएस की स्थापना

विकास दिव्यकीर्ति ने 1999 में दृष्टि आईएएस की स्थापना की। उनकी सोच थी कि सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी को सरल और सुलभ बनाया जाए ताकि अधिक से अधिक छात्र इसका लाभ उठा सकें। दृष्टि आईएएस ने बहुत ही कम समय में लोकप्रियता हासिल की और आज यह भारत के प्रमुख कोचिंग संस्थानों में से एक है। दृष्टि आईएएस की सफलता का श्रेय दिव्यकीर्ति की अनूठी शिक्षण शैली और उनके द्वारा बनाए गए सरल और प्रभावी अध्ययन सामग्री को जाता है।

वो लगभग पिछले बीस वर्षों से हिन्दी शहित्य, दर्शनशास्त्र, इतिहास और अन्य कई परीक्षा विषयों में अध्यापन करते है।

विकास दिव्यकीर्ति: चुनौतियाँ

दिव्यकीर्ति का करियर विवादों से भी अछूता नहीं रहा है। हाल ही में, उन्होंने एक व्याख्यान में सीता माता पर की गई टिप्पणी से विवाद उत्पन्न हो गया था।

दिल्ली कोचिंग विवाद

कुछेक दिन पहले दिल्ली में भारी बारिश के चलते Rau’s coaching सेंटर में पानी भरने से हुई तीन छात्रों की मौत के बाद छिड़े विवाद ने बड़ा रूप ले लिया जिससे विकास दिव्यकीर्ति की कोचिंग Drishti IAS भी अछूता नहीं रहा और इसकी भी पूरी जाँच पड़ताल की गई जिसमें कुछ ख़ामियाँ पायी गई जिसके बाद दिल्ली नगर निगम ने उनके कोचिंग सेंटर के कुछ हिस्सों को सील कर दिया था। इस घटना ने उनके और उनके संस्थान के प्रति कई सवाल खड़े कर दिए थे।

Youtube Video

विकास दिव्यकीर्ति ने इस मामले पर चुप्पी तोड़कर साफ़ शब्दों में माफ़ी माँगी है और साथ ही कहा है की अगर उनके कोचिंग Drishti IAS को आगे कभी बेसमेंट में पढ़ाने की अनुमति मिल भी जाती है फिर भी वह कभी बेसमेंट में बच्चों को नहीं पढ़ायेंगे।

विकास दिव्यकीर्ति

सामाजिक योगदान

शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के अलावा, दिव्यकीर्ति सामाजिक मुद्दों पर भी सक्रिय रहते हैं। वे विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपने विचार खुलकर रखते हैं और समाज को जागरूक करने के प्रयास करते हैं। उनका मानना है कि एक सच्चा शिक्षक वही है जो न केवल अपने छात्रों को विषय की शिक्षा दे, बल्कि उन्हें एक अच्छा नागरिक बनने के लिए भी प्रेरित करे।

साहित्य और लेखन

दिव्यकीर्ति ने कई किताबें भी लिखी हैं, जो मुख्यतः हिंदी साहित्य और सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी से संबंधित हैं। उनकी किताबें छात्रों में बेहद लोकप्रिय हैं और उनकी लेखनी ने हजारों छात्रों को प्रेरित किया है। उन्होंने हिंदी साहित्य को एक नया आयाम दिया है और कई महत्वपूर्ण साहित्यिक विषयों पर शोध और लेखन किया है।

निष्कर्ष

विकास दिव्यकीर्ति का जीवन एक प्रेरणा है उन सभी के लिए जो शिक्षा और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में कुछ नया और महत्वपूर्ण करना चाहते हैं। उनके द्वारा स्थापित दृष्टि आईएएस न केवल सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में सहायता करता है, बल्कि छात्रों को एक नया दृष्टिकोण और आत्मविश्वास भी प्रदान करता है। दिव्यकीर्ति की अनूठी शिक्षण शैली और सामाजिक योगदान ने उन्हें भारतीय शिक्षा जगत में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है।

 

यह भी पढ़ें:नीरज चोपड़ा: ऐसे तय किया गाँव से ओलंपिक तक का सफ़र बोले “हार नहीं, हिम्मत हारना मना है”

यह भी पढ़ें:मनु भाकर: “रचा इतिहास, बनी एक ही ओलंपिक में दो मेडल जीतने वाली पहली भारतीय एथलीट”

Leave a Comment